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बाल पंचायतों ने गांव प्रमुखों को, सेवाओं में सुधार के लिए प्रेरित किया

By वर्षा तोरगलकर
Published February 24, 2020
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9 Min Read
लातूर जिले के गाँवों की चाइल्ड-फ्रेंडली (बाल-सुलभ) पंचायत के सदस्य, जो स्कूली छात्र हैं, ग्राम पंचायत को अपने गाँव के लिए बुनियादी आवश्यकताएँ प्रदान करने के लिए प्रभावित करते हैं (छायाकार- वर्षा तोरगलकर)
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छठी कक्षा की छात्रा और बालस्नेही ग्राम पंचायत (जिसे अंग्रेजी में चाइल्ड फ्रेंडली पंचायत या CFP कहा जा सकता है) की सदस्य, नंदिनी बिरादर बताती हैं – “पहले हम महार जाति के बच्चों से बात नहीं करते थे, क्योंकि हमें बताया गया था कि वे नीची जाति के हैं और गंदे हैं।” महार अनुसूचित जाति श्रेणी में वर्गीकृत हैं और अक्सर अछूत माने जाते हैं। भारतीय संविधान के जनक, भीमराव रामजी अम्बेडकर एक महार थे।

महाराष्ट्र के लातूर जिले के शिरूर अनंतपाल ब्लॉक के दैथाना गांव की बिरादर ने VillageSquare.in को बताया – “बालस्नेही ग्राम पंचायत में हमें सिखाया गया कि विभिन्न जातियों, लिंग और धर्म के सभी बच्चे समान हैं। तब से, महार बच्चों सहित, हम सब एक साथ खेलते और खाते हैं।”

अपने गांव के एकमात्र स्कूल से ग्राम पंचायत के रास्ते, हाल ही में बनी सड़क पर चलते-चलते बिरादर बताती हैं कि सड़क का निर्माण तब हुआ, जब CFP ने यह मुद्दा मुख्य ग्राम-पंचायत में उठाया, जो ग्राम प्रशासन के लिए जिम्मेदार है।

अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होने के बाद, बाल-सुलभ पंचायतों के माध्यम से जुड़े लातूर जिले के गांवों के स्कूली छात्रों ने, अपने माता-पिता और ग्राम पंचायत सदस्यों को अपने गांवों के लिए पेयजल और उचित सड़क जैसी सुविधाएं प्रदान करने के लिए राज़ी किया।

बाल-सुलभ पंचायत

संयुक्त राष्ट्र बाल-कोष (यूनिसेफ) और महाराष्ट्र के ग्रामीण विकास विभाग ने 2014 से 2017 तक, प्रयोग के तौर पर, तीन जिलों के नौ गांवों में सीएफपी (CFP) बनाई, ताकि ग्रामीण-प्रशासन से जुड़े निकाय उन मुद्दों को समझ सकें, जिनका बच्चे सामना करते हैं। इसका उद्देश्य सभी हितधारकों, यानि प्रशासनिक प्रमुख, माता-पिता और ग्रामीणों को एक मंच पर लाना था, ताकि बच्चों से संबंधित मुद्दों का समाधान किया जा सके। सीएफपी ने बच्चों में जीवन सुरक्षा, सामाजिक संरक्षण, विकास और सशक्तिकरण के उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा की।

बिरादर के तीन सहपाठियों ने ग्राम पंचायत कार्यालय की एक दीवार पर लिखा उसका नाम दिखाया, जो सीएफपी के समिति-सदस्यों में शामिल था। सीएफपी के प्रमुख, श्रीकांत पाटिल ने उनके द्वारा हाल ही में लगाए गए पौधे दिखाए।

माता-पिता को समझाना

परियोजना की स्थानीय समन्वयक, यशोदा कदम ने सातवीं कक्षा के एक छात्र श्रीकांत पाटिल को सीएफपी के प्रमुख के रूप में चुना, जो एक ओजस्वी वक्ता और लोकप्रिय लड़का है, जिसे सभी बच्चे प्यार से दादा (बड़ा भाई) कहकर पुकारते हैं। वह कहती हैं कि माता-पिता को अपने बच्चों को पंचायत-सत्र में भाग लेने हेतु भेजने के लिए मनाना मुश्किल था।

सीएफपी के जिन सदस्यों के नाम पंचायत कार्यालय की दीवारों पर लिखे हैं, ग्राम पंचायत उनसे सहयोग करती है, उनकी बैठकों के लिए उन्हें कार्यालय प्रदान करती है (छायाकार- वर्षा तोरगलकर)

कदम VillageSquare.in को बताती हैं – “यहां जातिगत दुश्मनी बहुत गहरी है। कम से कम 10 लड़कियों ने उच्चतर या निम्नतर जातियों के लड़कों के साथ शादी करने के उद्देश्य से गांव छोड़ दिया। प्रत्येक मामले में, माता-पिता ने अपनी बेटियों के पतियों को परेशान किया। जाहिर है, इस कारण माता-पिता अपनी लड़कियों को सीएफपी में भेजने को लेकर आशंकित थे।”

सीएफपी की पहली बैठक, 2014 में ग्राम पंचायत कार्यालय में आयोजित की गई, जिसमें भाग लेने के लिए कदम और पाटिल केवल पांच बच्चों को ही जुटा पाए। पाटिल कहते हैं – “हमने एक रैली और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया और बच्चों को उसमें अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए कहा। इस चाल ने काम किया और 30 से अधिक बच्चों ने सीएफपी बैठकों में भाग लेना शुरू कर दिया।“

ग्रामवासियों का सहयोग

लातूर जिले के परियोजना-समन्वयक, जगदेवी सुगावे ने VillageSquare.in को बताया – “ग्राम पंचायत के सहयोग के कारण, इसी तालुक के आनंदवाड़ी गांव के बच्चों के लिए यह यात्रा तुलनात्मक रूप से आसान रही।”

अधिकांश बच्चों का कहना है कि उन्हें अपने माता-पिता को सीएफपी बैठकों में नियमित रूप से भाग लेने के महत्व को समझाने में काफी कठिनाई हुई। रेणुका शिरूरे कहती हैं – “सीएफपी की ओर इशारा करते हुए मेरी मां ने मुझसे कहा कि मैं लड़कों के साथ खेलने के बजाय, या तो पढ़ाई करूँ या घर के कामों में उनकी मदद करूँ।”

सीएफपी के सदस्यों में से एक, सृष्टि के अनुसार उनके जैसे कई माताओं-पिताओं ने शुरू से ही उनके काम में सहयोग किया। वह VillageSquare.in को बताती हैं – “हमारे काम को देखकर दूसरे माता-पिता और ग्रामवासी भी आश्वस्त हो गए।

उत्साही, सक्रिय बच्चे

चार से आठ साल की उम्र के बच्चे, बैठकों एवं कार्यक्रमों में, खेलने के लिए और छोटे-छोटे कामों में बड़ों का हाथ बँटाने के लिए भाग लेते हैं । सीएफपी के सदस्य आदर्श पाटिल ने बताया कि उन्होंने अंधविश्वास, बाल विवाह के बुरे प्रभाव, जैसे मुद्दों पर नाटक लिखे और उनका मंचन किया।

आनंदवाड़ी सीएफपी की कार्यकारिणी के सरपंच और उप सरपंच सहित सात सदस्य हैं। ग्राम पंचायत के एक कमरे में एक बोर्ड पर सबके नाम हैं, जिनमें भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता की समितियों के सदस्यों के नाम शामिल हैं।

सभी ग्रामवासियों के लिए स्वच्छ पेयजल सुनिश्चित करना, आनंदवाड़ी गाँव की बाल-सुलभ पंचायत की उपलब्धियों में से एक है (छायाकार – वर्षा तोरगलकर)

जब भी सीएफपी सदस्य मीटिंग करना चाहते हैं, उन्हें ग्राम पंचायत कार्यालय उपलब्ध करा दिया जाता है। प्राची भुसगारे के अनुसार वे नियमित रूप से बच्चों के डे’केयर सेंटर का यह देखने के लिए दौरा करते हैं, कि बच्चों को पौष्टिक आहार दिया जा रहा है या नहीं। गांव के चारों ओर की दीवारों को चमकदार चित्रों या स्वास्थ्य, पौष्टिक भोजन और सरकारी योजनाओं के संदेशों से सजाया गया है।

सीएफपी की सफलताएं

आनंदवाड़ी सीएफपी के सरपंच और सातवीं कक्षा के छात्र, सुशांत व्यांजसे ने, ग्राम पंचायत कार्यालय के पास एक बंद कमरे में रखा जल-शोधक दिखाया। यह जल-शोधक सभी ग्रामीवासियों को जल की आपूर्ति करता है।

व्यांजसे ने VillageSquare.in को बताया – “ग्राम पंचायत को सभी ग्रामवासियों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने की आवश्यकता के बारे में समझाना हमारी बड़ी सफलता है। अब सभी निवासी पांच रुपये में 20 लीटर शुद्ध पानी प्राप्त कर सकते हैं।”

प्राची भुसगारे की मां ने सीएफपी की बैठकों में उन्हें भेजने का पहले बहुत विरोध किया था। अब भोजन समिति की प्रमुख के रूप में, भुसगारे ने बंद नालियों की ओर इशारा करते हुए बताया, कि खुली नालियों को ढकने का काम सीएफपी ने करवाया था।

भुसगारे ने VillageSquare.in को बताया – “लगभग सभी नालियों को कवर कर दिया गया है। अपने स्कूल के प्रधानाचार्य की अनुमति और सहयोग से हमने स्कूल के आसपास 30 से अधिक पौधे लगाए हैं। प्रधानाचार्य ने हमारे काम में सहयोग करते हुए पौधों के आसपास बाड़ का निर्माण किया।

नौवीं कक्षा की छात्रा, सृष्टि दिवेकर ने बताया कि उन्होंने लड़कियों के स्कूल जाने के लिए मुफ्त ऑटो की व्यवस्था की है, क्योंकि उनके गांव में केवल चौथी कक्षा तक का स्कूल है और आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें दूसरे गांवों में जाना पड़ता है।

एक उदाहरण स्थापित करना

आनंदवाड़ी के उप-सरपंच भागवत वांगे को गर्व है कि उनके गांव के बच्चे जागरूक नागरिक बन गए हैं। उन्होंने कहा – ”वे हर चीज से वाकिफ हैं और वे हमें नलों या टैंकों से पानी के रिसाव या शौचालय खराब होने के बारे में अवगत कराते हैं।”

चंद्रपुर जिला परिषद के डिप्टी सीईओ ओमप्रकाश यादव ने VillageSquare.in को बताया – “परियोजना सफल रही है, और इसलिए हम इसका विस्तार 119 ग्राम पंचायतों में कर रहे हैं, जिनमें चंद्रपुर में 42 और नंदुरबार में 77 होंगी। हालांकि लातूर के गाँव के परिणाम उत्साहजनक रहे हैं, किंतु हमें सबसे पिछड़े जिलों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।”

वर्षा तोरगलकर पुणे की एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

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