By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept
Village SquareVillage Square
  • Culture
    • Arts & Entertainment
    • Festivals
    • Heritage
    • Music
  • Cuisine
  • Travel
  • Trailblazers
  • Climate
  • In Visuals
    • Photo Essays
    • Videos
  • Spotlight
    • Education
    • Gender
    • Governance
    • Ground Report
    • Health & Well Being
    • Her Life
    • Livelihoods
    • Sports
    • Technology
    • VS Postcards
Village SquareVillage Square
Search
Follow US
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Livelihoods

भूमि आवंटन एकल महिलाओं को गरिमा के साथ जीने में सहायक है

By मनीष कुमार
Published February 17, 2020
Share
8 Min Read
ओडिशा सरकार द्वारा एकल महिलाओं को दी गई मुफ्त आवासीय जमीन, और प्रधानमंत्री आवास योजना - ग्रामीण के माध्यम से प्राप्त आवास निधि, ने एकल महिलाओं को गरिमापूर्वक स्वतंत्र रूप से जीने के लिए क्षमता प्रदान की है (छायाकार-मनीष कुमार)
SHARE

जहां शहरी क्षेत्रों में एकल महिलाएं अपना रास्ता खुद बनाने में सक्षम हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की कम पढ़ी-लिखी उन जैसी महिलाएँ, एकल महिला के साथ जुड़े सामाजिक लांछन के चलते, अक्सर अनेक हालात से समझौता करके उपेक्षित जीवन जीती हैं|

जम्भू गौड़ा गंजम जिले के बुगुड़ा प्रशासनिक ब्लॉक के करसिंह गाँव की एक 60 वर्षीय एकल महिला है। उनके पति ने लगभग 20 साल पहले उन्हें छोड़ दिया था। कोई और चारा न पाकर, आजीविका और एक छोटे से कमरे का किराया भरने के लिए उसने एक निर्माण-मजदूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया।

गौडा ने VillageSquare.in को बताया – “मेरे पति के जाने के बाद मुझे पैसे और घर के लिए संघर्ष करना पड़ा। मैं ईंट और गारा को लादने और उतारने का काम करती थी। मुझे इस काम के लिए 50 रुपये मिलते थे। मेरी कमाई का एक बड़ा हिस्सा, 500 रुपये घर के किराए में चला जाता था।”

राज्य सरकार ने जंभू गौड़ा जैसी एकल महिलाओं के लाभ के लिए, कुछ साल पहले गंजम जिले में दो गैर-सरकारी संगठनों, लैंडेसा और एक्शनएड इंडिया, के सहयोग से एक योजना शुरू की थी।

योजना का उद्देश्य जिले में एकल महिलाओं की गणना करना, गाँव के पास उपलब्ध भूमि की पहचान करना और प्रत्येक को एक मुफ्त आवासीय प्लाट देना था। इस पहल ने, प्रधान मंत्री आवास योजना के धन की मदद से एकल महिलाओं को अपना घर बनाने और एक स्वतंत्र जीवन जीने की क्षमता प्रदान की है।

एकल महिलाएँ

ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में हजारों एकल महिलाएं रहती हैं। भूमि-डीड (आवंटन-दस्तावेज) बांटने के लिए राज्य सरकार द्वारा ‘एकल महिलाओं’ को एक श्रेणी के रूप में कानूनी रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।

ओडिशा के महिलाओं के पक्ष में संपत्ति के अधिकारों से संबंधित कानून के अंतर्गत, एकल महिलाओं को सरकार से भूमि-डीड प्राप्त हुई हैं (छायाकार-मनीष कुमार)

भूमि के आवंटन के उद्देश्य से आमतौर पर, परित्यक्ता, तलाकशुदा, विकलांग और एचआईवी/एड्स से पीड़ित महिलाओं को बेघर नागरिक माना जाता है।

ओडिशा के महिला और बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव से इस सवाल का कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ कि भूमि आवंटित करने के लिए शासन, एकल महिलाओं को कैसे परिभाषित करता है।

अनुकूल कानून

ओडिशा में, भूमि मिलकियत पर अपने अधिकार का दावा करने के लिए, महिलाओं, जिनमें एकल महिलाएं भी शामिल हैं, के सशक्तिकरण के लिए कई कानून बनाए गए थे। किन्तु, पितृसत्ता और लैंगिक रूढ़िवादिता के चलते, ऐसे कानून और उनका कार्यान्वयन अक्सर धरातल पर कमजोर ही रहे हैं।

पट्टे पर जमीन देने की अनुमति नहीं होने के बावजूद, ‘उड़ीसा भूमि सुधार 2006 संशोधन अधिनियम’ के अंतर्गत विधवाओं, तलाकशुदा और अविवाहित महिलाओं को अपनी जमीन को पट्टे पर देने का प्रावधान है।

कानून में एक परिवार को भी यह अधिकार है कि वह सीलिंग सीमा से ऊपर की अतिरिक्त भूमि को पत्नी और बेटी के नाम पर दर्ज करा सकें। परन्तु, कानूनी रूप से सशक्त होने के बावजूद भी, कई बार पुरुष सदस्य ऐसी भूमि के असली मालिक बन जाते हैं।

उड़ीसा सरकार भूमि निपटारा नियम 1983 ने ग्रामीण इलाकों में 10 डिसमिल तक की आवासीय प्लाट उन लोगों को आवंटित करने की अनुमति दी, जिनके पास कोई आवासीय भूमि नहीं है। इस क़ानून के अंतर्गत 2005 में, राज्य सरकार ने ऐसे ग्रामीणों के लिए वसुंधरा योजना शुरू की, जिनके पास कोई आवासीय भूखंड नहीं था।

बाद में ‘लड़कियों और महिलाओं के लिए ओडिशा राज्य की नीति – 2014’ के अंतर्गत यह आह्वान किया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में आयु और विकलांगता मानदंड के अलावा, कम आय वर्ग की उन महिलाओं को आवासीय भूमि आवंटित की जाए, जो विधवा, अविवाहित, तलाकशुदा या कानूनी रूप से अलग हैं, और उनके पास कोई घर या आवासीय भूमि नहीं हैं।

गरिमा का घर

तीन साल पहले, सरकार ने उनके गाँव की एकल महिलाओं की गणना के बाद जम्भू गौड़ा को 30 डिसमिल (लगभग 40 वर्ग मीटर) भूमि दी। इसके अलावा, उसे घर बनाने के लिए ‘प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण’ (PMAY-G) से धन भी मिला। अब उसे अपनी थोड़ी सी आय का एक हिस्सा किराए पर खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।

गंजम जिले के करसिंह गाँव की एकल महिलाएँ अपने जीवन-यापन के खर्चों को कम करने के लिए उपलब्ध भूमि पर सब्जियाँ उगाने के लिए एकजुट होगई (छायाकार-मनीष कुमार)

कई लोग दावा करते हैं कि इस पहल ने न केवल एकल महिलाओं के लिए भूमि और घर प्रदान किए हैं, बल्कि गाँव में गरिमा भी प्रदान की है, क्योंकि उनमें से कई अपनी वैवाहिक स्थिति और दूसरों पर निर्भरता के कारण बुरे समय से गुजर रही थीं। एकल महिला तनु सेठी कहती हैं कि इससे उन्हें एक नई पहचान और आत्म-सम्मान मिला है।

एक युवा ग्रामीण, शिबा नायक ने VillageSquare.in को बताया – “इनमें से कई महिलाएं या तो किराए के घर में रह रही थीं या फिर परिवार के किसी सदस्य पर निर्भर थीं। प्राश्रित होना उनके लिए संघर्षपूर्ण था। उनमें से कई के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था, जबकि कुछ को कुछ वर्षों के बाद घर से बाहर निकाल दिया गया था। घर और एक पट्टे की भूमि ने उन्हें आशा और गरिमा प्रदान की है।”

अतिरिक्त फायदे

38 वर्षीय तनु सेठी बताती हैं – “हमारे गाँव में 18 एकल महिलाएँ हैं, जिन्हें आवासीय जमीन मिली है। हम में से ज्यादातर शिक्षित नहीं हैं और मजदूर के रूप में काम करती हैं। माता-पिता के साथ रहने या किराए के खर्च से हमारी मुसीबतें बढ़ जाती थीं। लेकिन अब हमें किराए का भुगतान नहीं करना। हम में से कई, मिलकर पास की खाली जमीन में सब्जियों की खेती करते हैं, जिससे हमारे खर्चों में कमी आई है।”

जानीमानी सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और करसिंह की एक एकल महिला पूरणमासी नायक ने बताया कि भूमि और घर के लिए सहायता के अलावा, एकल महिलाओं को सरकार के ‘सामाजिक सुरक्षा और विकलांग सशक्तिकरण विभाग’ से ‘मधु बाबू विधवा पेंशन’ के तौर पर प्रति माह 300 रु प्राप्त होते हैं।

राज्य सरकार अभी पूरी तरह निर्धारित दिशा-निर्देशों पर आधारित ठोस योजना के अंतर्गत भूमि-मिलकियत नहीं दे रही। गंजाम में शुरू की गई पायलट परियोजना को राज्य के कुछ अन्य हिस्सों, जैसे कालाहांडी और रायगडा जिलों में भी लागू किया गया है।

एक्शनएड, भुवनेश्वर के परियोजना प्रबंधक, बीएन दुर्गा ने VillageSquare.in को बताया – “यह परियोजना महत्वपूर्ण साबित हुई, क्योंकि कई महिलाओं को उनके परिवार, यहाँ तक कि उनके माता-पिता भी अक्सर त्याग देते थे। भूमि-पट्टा मिलने से उन्हें दूसरी तरह के लाभ भी हुए हैं, जैसे कि इन दस्तावेजों की सहायता से वे कई अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ उठा पाती हैं।”

मनीष कुमार भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

Share This Article
Facebook Email Print
Previous Article Financial inclusion eludes workers in informal economy
Next Article Ageing with dignity – A dream worth pursuing
Eco-friendly swaps to beat plastic
Climate Village Vibe
The invisible women farmers
Ground Report Livelihoods
The many faces of mask art in India
Arts & Entertainment Culture Heritage
A case for A2 – milk with a conscience 
Cuisine Livelihoods

You Might also Like

Women in Patna district say the grain bank has released them from exploitation by landed farmers. (Photo by Mohd Imran Khan)

Anaj Bank frees Dalits from fear of hunger in Bihar

April 17, 2017
Sheep spread out on a barren stretch that was once a field of cumin (Photo by Namita Waikar)

Kachchh pastoralists struggle as grasslands shrink in Gujarat

November 6, 2019

Women unite to address problems and transform their village

July 24, 2020

Weavers keep Bastar’s pata saree tradition alive

September 18, 2022
Show More
Village Square

From food, culture and travel to the spotlight news and trailblazers making rural India a more equitable place, Village Square is your window to the vibrant world of rural India. Get the village vibe here.

  • Home
  • Spotlight
  • Ground Report
  • Her Life
  • Photo Essays
  • Youth Hub Events
  • About Us
  • Contact Us
  • Be a contributor
  • Careers
Subscribe to newsletter
Get Published in VS
© 2025 Village Square. All Rights Reserved.
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?